> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : दास्ताँ

शनिवार, 13 सितंबर 2014

दास्ताँ

अपना दर्द किसे बताये हेमंत
जो भी सुनता है हंस देता है
जख्म किसी को दिखाए कैसे
वो तो नमक छिड़क देता है।
जिससे उम्मीद थी कुछ करेगा
बिना पलटे ही वो चल देता है
नेह लगा ले खुदा से प्यारे हेमंत
वही है जो सबको संबल देता है।
© हेमंत कुमार दुबे
www.hemantdubey.com
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1 टिप्पणी:

  1. ​बहुत ही बढ़िया ​!
    ​समय निकालकर मेरे ब्लॉग http://puraneebastee.blogspot.in/p/kavita-hindi-poem.html पर भी आना ​

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