तुम्हारे हाथ जब उठते थे,
ताने हुए पिस्तौल को,
धड़कन मेरी रुक जाती,
पाँच गोलियाँ ठका-ठक,
फिर नेपथ्य से आवाज,
“विजय कुमार, इंडिया”|
रजत पदक जीत कर,
देश का गौरव बने,
विजय पताका फहराकर,
सबका मान बढ़ाया,
तुम्हें सलाम करूँ,
या दूँ धन्यवाद,
या फिर दुआयें,
जो चाहो सब तुम्हारा है|
(c) हेमंत कुमार दुबे
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