यादों की पिटारी
कानों में मिसरी-सी घोलती
वो दादा जी की प्यारी बोली,
बचपन की जो याद दिलाती,
वर्षों बाद भी मेरे हम जोली |
...........
सुंगंधित फूलों की बगिया में
चम-चम चमकते जुगनुओं की
सितारों जड़ित पंख फैलाये
आंगन में उतरती परियों की|
........
'परिकल्पना ब्लागोत्सव' में 'चाँद के पार' पन्ने पर प्रकाशित मेरी पूरी कविता पढ़ें |
कानों में मिसरी-सी घोलती
वो दादा जी की प्यारी बोली,
बचपन की जो याद दिलाती,
वर्षों बाद भी मेरे हम जोली |
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सुंगंधित फूलों की बगिया में
चम-चम चमकते जुगनुओं की
सितारों जड़ित पंख फैलाये
आंगन में उतरती परियों की|
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