जब मैं छोटा था तब
घर की दीवालों पर
होती थी सज्जित तसवीरें -
हनुमान, तुलसीदास, शिवाजी
चन्द्र शेखर आज़ाद, भगत सिंह,
जैसे वीरों की|
राम नाम कीर्तन , कबीर वाणी से
गूंजती थीं चौपालें,
कहानियां कहते दादाजी
हरिश्चंद्र, नचिकेता,
राणा सांगा, प्रताप, चेतक की |
१५ अगस्त और २६ जनवरी
खुशिओं के दिन होते,
गाते हम घूमते -
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा ,
झंडा ऊँचा रहे हमारा ...
गाँव-गाँव व गली-गली |
अब बच्चों के बचपन को
देख सकुचा जाते हैं,
जब पाते नहीं तनिक भी
देश भक्ति और संस्कार,
ठगे रह जाते हैं|
मोम - डैड की बोलों में
नहीं मिठास व आदर
जानते नहीं कौन शिवाजी
अबके बच्चे चाहते देखना
डिस्नी लैंड व हैरी पोट्टर |
कार्टून चैनलों पर
मार-धाड़ और
विदेशी सभ्यता देखते
अब बच्चे भूल चले
अपनी सांस्कृतिक विरासत |
जब राष्ट्र-गान बजता है
खड़े नहीं होते माँ-बाप
बच्चों से क्या उम्मीद करें
वे तो करते हैं अनुशरण |
भावुकता , प्रेम , आदर्श
नीति जैसी भावनाएं
अगर हम ही नहीं सिखायेंगे
बच्चों की इस नयी नस्ल को
संस्कारी नहीं बना पाएंगे ,
जीवन के अवसान समय पर
रोते ही रह जायेंगे |
सच में बच्चों को सीख घर से ही मिलती है...... बहुत विचारणीय हैं कविता के भाव.....
जवाब देंहटाएंधन्यवाद |
जवाब देंहटाएंभावुकता , प्रेम , आदर्श
जवाब देंहटाएंनीति जैसी भावनाएं
अगर हम ही नहीं सिखायेंगे
बच्चों की इस नयी नस्ल को
संस्कारी नहीं बना पाएंगे ,
जीवन के अवसान समय पर
रोते ही रह जायेंगे |
बहुत सार्थक सन्देश ...
बहुत सार्थक सन्देश| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंbahut hee sahi kabita likha hai aapne is kabita se naye yug ke ma bap ko sikh leni chahia.
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