तुमने शुभ रात्रि नहीं कहा
वक्त जो तुम्हें नहीं मिला
और प्रेमी बैठा हुआ
रात भर
कर रहा इंतज़ार
तुम्हारे ई-सन्देश के आने का
दर्द दिया तो सहता है
तुम्हारे दर्द से मिला दर्द
और चाहो तो पूछ लेना
उसके तकिये से
जिसने समेटा है समंदर
भावों का
और जिसपर चल पड़ी हैं
नदियों की धाराएँ
कैसा ये प्यार है
दर्द देता है
रूठता है
मनाता है
जानता है परिणाम
फिर भी बेवकूफी करता है
चुभो कर अपने ही दिल में
अपने हाथों से खंजर
मरहम भी खुद ही लगता है
जानता है
जुदा होकर जी न पायेगा
पर क्यों करता है
अपना ही खून
यह जान न पाता है
क्योंकि
यही शायद संसारी माया है
जिसने
उसे बार-बार भरमाया है
जानती हो
प्रेमी तुम बिन
बेशक मर जाएगा
जो तुमको एक पल के लिए भी
अपने पास नहीं पायेगा
इसलिए
सुबह की पहली किरण
जब दे दरवाजे पर दस्तक
तुम पुकार लेना
उसका नाम
जो तुम्हारी जिंदगी है
जैसे तुम उसकी हो
सिर्फ उसकी|
(c) हेमंत कुमार दुबे