> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : भगवन सुन लो मेरी पुकार

गुरुवार, 14 मार्च 2013

भगवन सुन लो मेरी पुकार


 
भगवन तुमसे क्या छिपा है मेरा दर्द
मेरी बेचैन निगाहें
मेरा तडपता तन-मन
मेरे खून के आँसू
जो मेरे प्रिय को मुझसे दूर किया
 
तुम तो लिखते हो
विधाता तक की तक़दीर
क्यों लिख दिया फिर तुमने
मेरी तक़दीर में प्रिय का विछोह

बदल सकते हो तो बदल दो
वर्ना ले लो अपना यह अंग-वस्त्र
मिला दो पञ्च तत्वों में
ताकि
हवा बन सांसों में उसकी बसूँ
जल बन बादलों से गिरूँ
छू लूँ उसे
वह भीग जाए मेरे प्यार में
अग्नि रूप दीपक में
उसके घर को करूँ प्रकाशित
सूर्य बन चमकूँ
उसे देखूं प्रतिदिन
नीले अम्बर में तारा बन चमकूँ
उसे निहारूँ
जब खड़ी हो आँगन में
मिट्टी में मिलूँ
बीज संग उपजूं
उसकी फूलों की क्यारी में
खिलूँ फूल बन
महकूँ
उसे देख मुस्कुराऊं
और जब वह छूले मुझको
निहाल हो जाऊं
 
भगवन
इस बेचैन तन मन के
तुम्हीं आश्रय दाता
घट-घट वासी अंतर्यामी
करो मुझे इस पार या उस पार
 
अगर स्वीकार है मेरी आराधना
अगर तुम सच में हो
तो सुन लो मेरी पुकार
भगवन
यह तन और मन
कैसे भी मिला दो
मेरे प्रीतम से

क्योंकि
जब मैं तुमसे दूरी नहीं सह पाता
तो उससे दूरी कैसे सही जाय
आखिर उसमें भी तो
तुम्हारा ही नूर है|

(c) हेमंत कुमार दुबे

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