फिर भी मैं चलता ही जाऊं
हर पल तेरी याद सताये
निर्झर नीर नैनों से बहाऊं
मीलों की दूरी कैसे मिटाऊं
विरह वेदना कैसे दिखलाऊंतुझ संग प्रीत लगाई प्रीतम
कब और क्यों कैसे बतलाऊं
जब हर न पाऊं पथ बाधा को
क्यों जोर से नहीं चिल्लाऊंचोट लगी जब दिल पर मेरे
तुझे हाल कैसे न बताऊं
आग लगी जीवन नदिया में
किस पानी से इसे बुझाऊंतपन मेरी महसूस न तुमको
कैसे मैं शीतल बन जाऊं
तेरा हर दुःख मेरा है प्रीतम
प्यार है तुमसे कैसे समझाऊं जीना मरना है अब तेरे लिए
किस तरह से तुम्हें बताऊं |
(c) हेमंत
कुमार दुबे
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