> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : प्रेम वर्षा

रविवार, 18 अगस्त 2013

प्रेम वर्षा


इस सावन की आखिरी बारिश
कभी खिलखिलाती
कभी ठहाके लगाती
भिगो रही थी
दो बदनों को

एक छाते के नीचे
आधे सूखे, आधे गीले
अल्हड मस्ती से टहलते
पानी के पतले रेलों पर
पैरों से छप-छप करते
सूनी सड़क पर तलाशते बचपन

कभी फैला कर बाँहों को
समेट लेने को मानो आतुर
बीते वर्षों के बिखरे मोती
बरस रहे जो अम्बर नैनों से

अद्वैत भाव से भरे हुए
प्रीतम वर्षों बाद मिले थे
प्रेम वर्षा को करते आत्मसात
एक-एक पल जी रहे थे

एक छाते के नीचे दोनों
फिर भी पूरे भीग रहे थे
रिमझिम-रिमझिम बूंदों से
तन भर मन भर |


© हेमंत कुमार दूबे 

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