तिरछी नजर से जो उसने मुझे देखा
मैं सुध-बुध भूला बैठा
पलकें झुकाकर जब वो मुस्कुराई
मैं सारा जीवन लुटा बैठा
एक पल की खुशी की खातिर
हाय, मैंने यह क्या किया
मेरे चाहने वाले तो और भी थे
सबको दर्द दिया, रुसवा किया
मैं मिट गया उसके लिए
चेहरे पर उसके शिकन नहीं है
बड़ी देर से समझ आया
छलना ही उसकी आदत है |
(c) हेमंत कुमार दूबे
sundar
जवाब देंहटाएंdi ko chunne vali....
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