> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : उसकी आदत

सोमवार, 26 अगस्त 2013

उसकी आदत



तिरछी नजर से जो उसने मुझे देखा
मैं सुध-बुध भूला बैठा
पलकें झुकाकर जब वो मुस्कुराई
मैं सारा जीवन लुटा बैठा

एक पल की खुशी की खातिर
हाय, मैंने यह क्या किया
मेरे चाहने वाले तो और भी थे
सबको दर्द दिया, रुसवा किया

मैं मिट गया उसके लिए
चेहरे पर उसके शिकन नहीं है
बड़ी देर से समझ आया
छलना ही उसकी आदत है |

(c) हेमंत कुमार दूबे

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