> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : कितना उदार है नभ

सोमवार, 3 सितंबर 2012

कितना उदार है नभ


 

शब्द-बाणों से बनी लकीरों के साथ,
अंतर-पीड़ा को छुपाये हुए,
मेरे चेहरे पर जो मुस्कान थी,
धोखा नहीं दे सकी,
झुठला नहीं सकी,
ढक नहीं सकी,
मेरे घावों को,
वही, जो मेरे अपनों ने दिए |
 
आसमां जानता था,
वह व्यापक, पहचानता था,
मेरे बहते हुए लहू को,
तभी तो,
रो पड़ा मेरे दर्द को देख |

उसके अमृत रस ने,
भर दिए सब घाव,
मेरे आंसूओं को छुपा लिया,
शीतलता दे दी मन को |

कितना उदार है नभ,
काले मेघों के संग,
मेरे साथ हो लिया,
मित्र की तरह रो लिया,
फिर,
बिजली चमका कर,
दिखा दिया आशा की किरण |

 
(c) हेमंत कुमार दूबे

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