> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : कवि

सोमवार, 27 अगस्त 2012

कवि

 
 
 
 
शब्द को पकड़ने के लिए,
मानो गर्म रेत पर चलता है,
भावों को मूर्त बनाने हेतू,
मृग की तरह भटकता है |

तृष्णा जितनी तीव्र होती है,
उतना ही निखरता है कवि,
मृग-मरीचिका सहता है,
नभ में तपते रहते रवि |

बन देश-समाज का कर्णधार,
शब्दों के संग खेलता है,
मिटाता दिलों की दूरियां,
अलख जगाता जाता है |

जब सबकी जेब भरती है,
कवि का दिल भरता है,
माया कैसी निराली है,
कवियों का बटुआ खाली है |

(c) हेमंत कुमार दूबे

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