जब तुमसे बात नहीं होती
चांदनी रात नहीं होती
घने बादल होते हैं नभ पर
बोलते उल्लू शाखों पर
अमावस सा घुप अँधेरा होता
कुछ भी सुझाई नहीं देता
जब तुमसे बात नहीं होती
तारों की सौगात नहीं होती
बिजली कडकती है
वज्र-सा आघात करती है
डरा हुआ मन मरता है
तन काँपता और तडपता है
जब तुमसे बात नहीं होती
जज्बातों की औकात नहीं होती
साँसे उखड़ती जाती हैं
धड़कने थमने लगती हैं
दिल से चीत्कार निकलती है
दम घुटने लगता है |
(c) हेमंत कुमार दुबे
"जब तुमसे बात नहीं होती
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धड़कने थमने लगती हैं"
कुछ कुछ होता है.....