घास-फूस लकड़ी के ऊपर
खपरैल की छत होती थी
आँगन में दाने चुगती
गौरैया घर में होती थी
रोज प्रात: ची-ची करती
गौरैया पहले उठ जाती थी
कभी इधर कभी उधर फुदक
बचपन में मन बहलाती थी
आती थी जिस जंगले से हवा
सखियों संग वह भी आती थी
चोंच में ला कर नीम के तिनके
बल्लियों के बीच घर बनाती थी
आँगन में धान से चावल
बड़ी सफाई से खाती थी
आहट पाते ही कदमों के
भूसी छोड़कर उड़ जाती थी
बने मकान ईंट-सीमेंट के
गौरैयों के आशियाने छुटे
लुप्तप्राय हो गयी गौरैया
जैसे बचपन के दिन बीते |
Bahut Sunder.....Jane Kahan Gum Gayi Hai Aangan ki Chahak
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