> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : प्रश्न

शुक्रवार, 21 दिसंबर 2012

प्रश्न




सुलग रही है अपनी जिंदगी 
देख कर समाज में दरिंदगी
अजनबी हो रही है मानवता
बढ़ रही समाज में कायरता
मिट रही है दिलों से ममता
बढ़ रहा कर्तव्य पलायानता
प्रश्न हर नागरिक करता है
वह जो प्रेम-शांति से रहता है
खुद को ही अब मैं जला दूँ
या दरिंदों को ही झोक दूँ?
मिटा दूँ देश समाज के द्रोही 
या कायरता से मिटना है सही?


(c) हेमंत कुमार दूबे


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