सुलग रही है अपनी जिंदगी
देख कर समाज में दरिंदगी
अजनबी हो रही है मानवता
बढ़ रही समाज में कायरता
मिट रही है दिलों से ममता
बढ़ रहा कर्तव्य पलायानता
प्रश्न हर नागरिक करता है
वह जो प्रेम-शांति से रहता है
खुद को ही अब मैं जला दूँ
या दरिंदों को ही झोक दूँ?
मिटा दूँ देश समाज के द्रोही
या कायरता से मिटना है सही?
(c) हेमंत कुमार दूबे
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