> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : यमुना

बुधवार, 14 सितंबर 2011

यमुना









जो हवा आती थी
तुम्हें छूकर
उसकी खुशबू लुप्त हो गयी
शहर के कंकरिती जंगलों में
नालों के किनारे लोटते
शूकरों के साथ रहते
आशियाना बनाने की चाहत में
मानुषों की गन्दगी का शिकार
तुम आज की यमुना हो
जिसमे शहर का
कचरा बहता है |

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