जला आया हूँ,
तुम्हारे लिखे खतों को,
जो मेरे पास थे
रखे हुए सहेज कर,
अब फैल गये है
हवा के संग,
धुआं बन कर|
पर बाकि है एक उम्मीद -
उस हवा का कोई झोंका
तुम तक पहुँचे
और याद दिलाये,
तुमने जो लिखा था,
जिससे मेरा दिल
वर्षों तक दु:खा था |
आज सुकून है,
पर भूला नहीं तुम्हे,
आगे भी नहीं मुमकिन,
क्योंकि -
धुएं का एक कतरा
मेरी सांसों के साथ
फेफड़े में बस गया है,
मरते दम तक
तुम्हारी याद दिलाने को |
(c) हेमंत कुमार दुबे
आज सुकून है,
जवाब देंहटाएंपर भूला नहीं तुम्हे,
आगे भी नहीं मुमकिन,
क्योंकि -
धुएं का एक कतरा
मेरी सांसों के साथ
फेफड़े में बस गया है,
मरते दम तक
तुम्हारी याद दिलाने को |
***punam***
bas yun...hi..
waah...
जवाब देंहटाएंbahut sundar...
yaadon ka ahsaas... bahut khoob...