> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : निवेदन

सोमवार, 5 सितंबर 2011

निवेदन



 
तुम्हारी अलकों से मोती गिरे
मेरी पलकों में बस गए,
याद तुम्हारी आई तो
हिमालय की अलकनंदा बन गए |
गोते खाते जिंदगी बही जा रही,
अब तो आ जाओ प्रीतम,
कहीं यह किस्ती डूब न जाये
तुम्हारा इंतज़ार करते करते |


(c) हेमंत कुमार दुबे

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