> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : संस्कार व भविष्य

शुक्रवार, 25 मार्च 2011

संस्कार व भविष्य


जब मैं छोटा था तब 
घर की दीवालों पर
होती थी सज्जित तसवीरें -
हनुमान, तुलसीदास, शिवाजी
चन्द्र शेखर आज़ाद,  भगत सिंह,
जैसे वीरों की|

राम नाम कीर्तन , कबीर वाणी से
गूंजती थीं चौपालें, 
कहानियां कहते दादाजी 
हरिश्चंद्र, नचिकेता, 
राणा सांगा, प्रताप, चेतक की |

१५ अगस्त और २६ जनवरी 
खुशिओं के दिन होते,
गाते हम घूमते -
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा ,
झंडा ऊँचा रहे हमारा ...
गाँव-गाँव व गली-गली |

अब बच्चों के बचपन को
देख सकुचा जाते हैं, 
जब पाते नहीं तनिक भी
देश भक्ति और संस्कार,
ठगे रह जाते हैं|

मोम - डैड की बोलों में
नहीं मिठास व आदर 
जानते नहीं कौन शिवाजी 
अबके बच्चे चाहते देखना 
डिस्नी लैंड व  हैरी पोट्टर |

कार्टून चैनलों पर 
मार-धाड़ और 
विदेशी सभ्यता देखते 
अब बच्चे भूल चले 
अपनी सांस्कृतिक विरासत |


जब राष्ट्र-गान बजता है
खड़े नहीं होते माँ-बाप 
बच्चों से क्या उम्मीद करें
वे तो करते हैं अनुशरण |

भावुकता , प्रेम , आदर्श 
नीति जैसी भावनाएं
अगर हम ही नहीं सिखायेंगे 
बच्चों की इस नयी नस्ल को
संस्कारी नहीं बना पाएंगे ,
जीवन के अवसान समय पर 
रोते ही रह जायेंगे |



5 टिप्‍पणियां:

  1. सच में बच्चों को सीख घर से ही मिलती है...... बहुत विचारणीय हैं कविता के भाव.....

    जवाब देंहटाएं
  2. भावुकता , प्रेम , आदर्श
    नीति जैसी भावनाएं
    अगर हम ही नहीं सिखायेंगे
    बच्चों की इस नयी नस्ल को
    संस्कारी नहीं बना पाएंगे ,
    जीवन के अवसान समय पर
    रोते ही रह जायेंगे |

    बहुत सार्थक सन्देश ...

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सार्थक सन्देश| धन्यवाद|

    जवाब देंहटाएं
  4. bahut hee sahi kabita likha hai aapne is kabita se naye yug ke ma bap ko sikh leni chahia.

    जवाब देंहटाएं