क्या मैं शून्य हूँ?
नहीं - उससे भी निराला |
शून्य तो मात्र प्रतिबिम्ब है
जैसे आकाश , हवाएँ,
लहराता समुन्द्र,
दूर - दूर तक फैली हरी भरी धरती,
प्रकाश और अँधेरा ,
स्वर -
वीणा, पखावज जैसे साजों के,
नाद -
जैसे बादलों और बिजली के
सब के सब मेरे स्वरुप है |
पर मैं कौन हूँ
नहीं जानता था
तब-तक जब-तक मिले नहीं सतगुरु |
देख नहीं सकती आँखें,
सुन नहीं सकते कान, शब्द जहाँ नहीं जाते,
उसका जिह्वा कैसे करे बखान|
बताया सतगुरु ने -
हर चीज-वस्तु में देता हुआ सबको सत्ता,
मैं हूँ सबमें मौजूद,
अचिन्त्य, अलग,
सबसे न्यारा,
सबसे प्यारा -
आत्म-तत्व , परमात्म-तत्व |
निसंदेह वो परम तत्व ही कण-कण में विद्यमान है ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना ।
उस सर्वशक्तिमान ईश्वर की सत्ता तो सर्वमान्य है..... बहुत सुंदर पंक्तियाँ रची हैं आपने..... अर्थपूर्ण कविता
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, डॉ मोनिका व डॉ दिव्या |
जवाब देंहटाएं