> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : मेरे कान्हा

रविवार, 13 नवंबर 2016

मेरे कान्हा


कान्हा ऐसे ही मुरली बजाते रहना
जहाँ देखूं तुम ही तुम नजर आना
तुम साथ हो कान्हा तो मुझे क्या कमी है
मैं दीवानी हुई जबसे मुरली की धुन सुनी है
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