> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : मेरा धर्म

रविवार, 20 दिसंबर 2015

मेरा धर्म

बुतों को पूजना चाहो तो भले पूजो मेरे भाई
मेरा तो धर्म इंसानियत यह अव्यक्त कहता है।
© हेमंत कुमार दुबे 'अव्यक्त'
इन पंक्तियों के साथ ही मैंने अव्यक्त उपनाम चुना है आगे की कविताओं के लिए लिये।

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