> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : 2025

रविवार, 14 सितंबर 2025

अभियन्ता-गान

अभियंता-गान | अभियंता दिवस पर परम अभियंता को समर्पित काव्य प्रार्थना

प्रस्तुत है अभियंता दिवस पर विश्व-अभियंता को समर्पित एक काव्य प्रार्थना और सर्वजन के लिए शुभकामना। इस कविता में एक ऐसी दृष्टि है जो विज्ञान, आध्यात्म और सृजनशीलता को एक सूत्र में पिरोती है। यह कविता न केवल अभियंता 🛠️ दिवस पर हृदय का उद्गार है, बल्कि उस दिव्य अभियंता की स्तुति भी है, जिसने हमें सृजन की शक्ति दी। यह कविता एक प्रार्थना की तरह है, जो मानव की रचनात्मकता को परमेश्वर की दिव्य योजना से जोड़ती है:

अभियंता-गान

अभियंता दिवस पर परम अभियंता को समर्पित काव्य प्रार्थना

जिसने रचा ब्रह्मांड का नक्शा,
हर तारे को दिया पथ अपना।
जिसकी सोच में छिपा विज्ञान,
वही है सृष्टि का मूल विधान।।

धरती, जल, अग्नि, आकाश,
उसके संकेतों में सबका प्रकाश।
जीव और निर्जीव का संतुलन,
उसके कोड में है हर अनुशासन।।

उसने मानव को दिया विचार,
दिया सृजन का भी अधिकार।
हाथों में दी योजनाओं की शक्ति,
मन में भरी नवाचार की युक्ति।।

हर पुल, हर भवन, हर मशीन,
उसकी प्रेरणा से होता सृजन नवीन।
हम सब अभियंता हैं उसके वंश,
हमारे कार्य हैं उसके ही लघुत्मांश।।

वह परम अभियंता, परम ज्ञानी,
जिसकी रचनाओं का न कोई सानी।
हम उसकी योजना के लघु-निर्माता,
उसके स्वप्न के जीवित द्रष्टा।।

"हे ईश्वर! आप ही है कोड का मूल,
आपके बिना सब अधूरा, सब निर्मूल।
आपकी कृपा से चलता है यह यंत्र,
आपके आदेश से है गति और तंत्र।।"

"हे प्रभु, आपको हम करें प्रणाम,
आपकी कृपा से करें सब काम।
आपकी रचना में हम रचें नया और अच्छा,
हर आविष्कार पवित्र और सच्चा।।"

अभियांत्रिकी का हो शुभ विचार,
हर सृजन में हो मंगल नवाचार।
हर कर्म बने एक दिव्य साधना,
अभियंता दिवस पर यही शुभकामना।।

🪷🙏🪷🙏🪷🙏🪷🙏🪷🙏🪷🙏

शनिवार, 13 सितंबर 2025

धूप छांव जिंदगी

धूप छांव जिंदगी | हिंदी कविता | हेमंत कुमार दुबे 'अव्यक्त'

धूप छांव जिंदगी

✍️ · 📍 गाज़ियाबाद · 🗓️

थोड़ी धूप थोड़ी छांव है जिंदगी
एक अलसाई सी सुबह में
गो खुरों की उड़ाई धूल से अटी
भारत का एक गांव है जिंदगी।

कभी अतीत को पलट कर देखती
वर्तमान को संवारती है जिंदगी
शाम के धुंधलके में देहरी पर बैठी
अंत को तलाशती उदास है जिंदगी।

कभी अपनों से झिड़क को सहती
परायों में अपनापन ढ़ूंढ़ती है जिंदगी
औरों पर हंसती कभी खुद पर मुस्कराती
कभी आंसू की नदी बहाती है जिंदगी।

कभी फूल के परागों का गुलाल लगे
कभी पल्ले आया बवाल लगे जिंदगी
अक्सर तो गणित का सवाल लगे
कभी सुंदर स्वप्न संसार लगे जिंदगी।

शहर की आपाधापी में जंजाल लगे
तो कभी चकाचौंध में मायाजाल जिंदगी
एक-एक पाई के लिए लड़ती-भिड़ती
कभी थकी-सी तो कभी बेमिसाल जिंदगी।

वक्त बदले तो बदले

वक्त बदले तो बदले | प्रेम कविता | हेमंत कुमार दुबे ‘अव्यक्त’

वक्त बदले तो बदले

✍️
📍 गाज़ियाबाद | 🗓️

सच्चा प्यार ना बदले कभी
ना वक्त की चाल से,
ना हालात के झंझावात से
न दुख की काली रात से।

जब पहली बार देखा था,
वो पल दिल में जिंदा है
तेरी मुस्कान की मासूमियत,
हर मौसम में मेरी हिम्मत है।

न वक्त छीन पाया वो एहसास,
न दूरी ने कम की वो प्यास
तेरे नाम की जो धुन बसी है
वो मेरी हर धड़कन में है खास।

ये प्यार मेरा सच्चा है,
बदलना इसकी फितरत नहीं
ये तो वो दीपक है ‘अव्यक्त’,
आँधियों में जो बुझता नहीं।

रविवार, 7 सितंबर 2025

क्षमा - एक शक्ति

क्षमा – एक शक्ति | आध्यात्मिक हिंदी कविता | हेमंत कुमार दुबे ‘अव्यक्त’

क्षमा – एक शक्ति

✍️
📍 गाज़ियाबाद | 🗓️

जैन-दर्शन की दीप-शिखा,
वैदिक धर्म की ज्योति,
क्षमा से ही मिलते हैं,
मोक्ष-मार्ग के मोती।

क्रोध-द्वेष की जंजीरें तोड़े,
यह जीवन की संजीवनी,
देवत्व की राह दिखाए,
क्षमा में है दिव्यता घनी।

न यह कोई दुर्बलता है,
न यह कोई हार,
बल की यह पराकाष्ठा है,
शांति का उपहार।

कर्म-बंधन से मुक्ति दिलाए,
आत्मा को करे शुद्ध,
ब्रह्म-ज्ञान की सीढ़ी बनकर,
जीवन बनाये परम बुद्ध।

मन में जो क्षमा बसाए,
‘अव्यक्त’ वही है सच्चा ज्ञानी,
उसके भावों में बसती है,
शांति और मीठी वाणी।

जैन-शास्त्र कहें “मुक्ति का द्वार”,
वेद कहें “ब्रह्म का सार”,
क्षमा है वह दिव्य प्रकाश,
जो करे जीवन को उजियार।

मंगलवार, 4 मार्च 2025

हृदयांगन में


लिखना पढ़ना अच्छा लगता है
पर कुछ भी लिखा नहीं
कई महीने गुजर गए हैं
फिर भी लेखनी उठी नहीं

शरद ऋतु हो गई शेष
वसंत का हो गया प्रवेश
आज कवि के हृदयांगन में
स्फुरित हुए हैं शब्द विशेष

नभ में चंद्र सूर्य संगम
प्रातः अरूण प्रभा गहराई है
शीतल मंद पवन बहती स्वछंद
कुसुमित बगिया में तरुणाई है

शंख घड़ियाल कर रहे नाद
मंत्रोच्चार आरती ध्वनि छाई है
पुष्प हस्त में लिए अलि
पीली चुनर उसकी लहराई है

जय घोष कर रहे भक्त
घंटा ध्वनि सुनाई दी है
सब पूर्ण काम हो जायेंगे
अव्यक्त प्रतीति मन आई है।

@ हेमंत कुमार दूबे 'अव्यक्त'

04.03.2025