> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : जून 2011

बुधवार, 15 जून 2011

कौन जिम्मेदार है?

गंगा पुत्र कहलाने वाला,
ख़ामोशी से लड़नेवाला,
नहीं जुल्म से डरनेवाला,
हरि के आश्रित रहने वाला,
निगमानंद हो हरि में विलीन
खड़ा कर गए कई प्रश्न |

क्या लड़ाई भ्रष्टाचार से,
काला-बाजारी, अनीति से,
काले धन के अम्बार से
फिर बलि लेगी किसी की
देश के सपूत की ?

देशवासी कब तक सोयेंगे,
वोट की ताकत कबतक खोयेंगे,
दमन सहते कबतक रोयेंगे,
एक भूखा, दूसरे कबतक खायेंगे ?
राजनीति की बलि वेदी पर
कबतक मारे जायेंगे?

गंगा के देश के हित में,
भारत के जिम्मेदार सपूत का,
निगमानंद की मौत का
कौन जिम्मेदार है?
कौन सजा का हकदार है ?

पूनम का चाँद


आज पूनम की रात,
आकाश की ओर
उठती हैं नजरें,
ढूँढती हैं चारो तरफ,
चाँद आसमान में |

शशि का प्रकाश
दिखता क्यों नहीं,
पूछता है छोटा बच्चा
देश का लघु नागरिक|

चाँद को लगा है ग्रहण
कह दूँ तो
वह नहीं समझेगा
उसी तरह जैसे
झुग्गीवाला नहीं समझेगा |

एक पैकेट नमकीन
एक बोतल शराब
और ५०० का नोट
उसके वोट की शक्ति
ग्रहित कर देते हैं |

शशि के जैसे ही
भारत को ढक लिया है
फिर कुटिल राजनेताओं ने
प्रकाश की किरण का
थोडा इंतज़ार करो |

--- हेमंत कुमार दुबे

रविवार, 12 जून 2011

मेरा घर - चाँद के पार..


धरती का घर तो खिलवाड़ मात्र है,
खूबसूरत पर क्षणभंगुर
जैसे निर्जीव मिट्टी की दीवाल पर
बच्चे द्वारा बनी-टंगी तस्वीर |
घर तो मेरा वही है,
जिसमें दृश्यमान -
ऐसी अनगिनत तस्वीरें,
चाँद और सितारे जैसे दीये,
सूरज जैसे अनेकों बल्ब,
पृथ्वी जैसे गुल्दस्तों से सजा,
असीम प्रांगण लिए  -
जिसमे सिमटी है आकाशगंगाएँ,
अनगिनत-अनूठी सृष्टियाँ |

चाँद के पार



कहाँ है मेरा घर
दिल्ली में,
भारत में,
धरती पर
या आसमान में |

वहाँ...
जहाँ दृष्टि नहीं जाती,
मन व बुद्धि भी नहीं जाते,
वहीं मेरा घर है |

चर्म-चक्षुओं को
चाँद बड़ा सा दिखता है
नजदीक सा लगता है
इसलिए
घर मेरा थोडा आगे है
चाँद के पार |

---हेमंत कुमार दुबे