> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : यादों का पुल

शनिवार, 1 जून 2013

यादों का पुल




जब हम मिले वर्षों बाद
सामने था यादों का पुल
लटकता हुआ
हमारी जिंदगी के दो छोरों से
जिस पर चल कर
हमें मिलना था
और फिर
इस पार या उस पार
जिंदगी को आगे बढ़ाना था

कितना खतरनाक लगता था
एक कदम बढ़ाते ही
पुल के टूटने का डर
गिर कर बिखरने का डर
रोंगटे खड़े करने वाला
भविष्य का डर

पर डर के आगे ही तो जीत होती है
और अब तक की जिंदगी में हार
न तुमने मानी थी न मैंने
तभी तो खड़े  थे
यादों के पुल के दो तरफ

हौसला देख कर एक दूजे को
अपने आप बढ़ गया
सांसों की गति को थामे
हमारा कदम पुल पर बढ़ गया

वह हिला जोरों से
चरमराया
पर हमारे कदमों को
रोक न पाया
और हार गया
हमारी हिम्मत और साहस के आगे
जीत का जश्न
गूंजने लगा चहुँ ओर |


© हेमंत कुमार दुबे

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