> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : मैं तनहा नहीं हूँ

शुक्रवार, 10 मई 2013

मैं तनहा नहीं हूँ


 

अँधेरे में क्या कर रहे हो?
जला लो घर की बत्तियाँ
थोड़ी रोशनी आने दो
अँधेरे को दूर जाने दो
तन्हाइयों से निकल कर
मिलो सब से
थोड़ा खुश हो लो
थोड़ा जी लो

अजी, नहीं!
आपको गलत फहमी है
मैं तनहा नहीं हूँ
अँधेरा तो मेरा मित्र है
जो मुझे मुझसे मिलाता है
अकेलेपन की जिंदगी से
राहत दिलाता है
उसकी यादों में डुबाता है
जिसमें खोकर
खुशी का सागर लहराता है

 
अँधेरे में ही तो हम दोनों
मीठी बातें बतियाते हैं
खुद ही सुनते हैं
खुद को ही सुनाते हैं
समस्याओं के समाधान
भविष्य की योजनाएं
घर और आफिस की बातें
देश की राजनीति
खेल कूद और सिनेमा जगत
पर्यटन की योजनाएं
और भी बहुत कुछ
सब अँधेरे में ही बनती हैं
चर्चित होती हैं
क्योंकि
अँधेरा हमें वो सुकून देता है
जिसकी तलाश में
भटकती है दुनिया
इसलिए कहता हूँ
छोडो मेरी चिंता यारों
मेरे साथ मेरा हम सफ़र है
मैं तनहा नहीं हूँ |

(c) हेमंत कुमार दुबे

2 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर भाव हैं..सच्ची बाते हैं।

    ..और मुझे नहीं लगता कि कोई रोबोट कविता पढ़कर कमेंट लिख पायेगा।

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  2. खुबसूरत अहसास और अभिव्यक्ति!
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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