> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : नवंबर 2012

मंगलवार, 27 नवंबर 2012

ई-पत्र



कागज हो गया है महंगा
डाक-व्यय भी बढ़ गया है
रफ़्तार से भागती जिंदगी में
टेक्नोलॉजी ही एक सहारा है

करों से कम हो गयी आय
लोग मिलते नहीं घर-घर जाय
सूझा दिया इन्टरनेट ने उपाय
फेसबुक पर हाय और गुड-बाय

कलम-दवात कहीं नहीं दिखती
अब ई-पत्र लिखे पढ़े जाते हैं
सभी हित-मित्र सगे-सम्बन्धी
फेसबुक व स्काइप से बतियाते हैं

पसंद आ जाती जब कोई बात
लाइक-टिपण्णी-साझा करते जाते हैं
कागजी एल्बम भी हुई पुरानी बात
छाया-चित्र फेसबुक पर दिखलाते हैं

उंगलियाँ नाचती हैं की-बोर्ड पर
खट-खट खटा-खट आवाज आती है
क्लिक-क्लिक होता चूहे पर
चिठ्ठी कंप्यूटर से भेजी जाती है

जवाब फ़ौरन आता जाता है
इंतज़ार की घड़ियाँ छोटी होती हैं
पसंद किये जाते जज्बात झटपट
क्लिकों में तस्वीरें उभर जाती हैं|

© हेमंत कुमार दूबे

सोमवार, 19 नवंबर 2012

तुम्हारे बचपन के दिन




याद आये पाली तुम्हारे बचपन के दिन
बेपरवाह जीवन के अनमोल सुनहरे क्षण
गुनगुनी धूप में खिलखिलाती उन्मुक्त हँसी
जिससे खिल उठता था घर आँगन उपवन

कभी अलमारी कभी परदे के पीछे से झांकती
चौंका देने वाली छुपन-छुपाई की धमाचौकड़ी
मूंगफली के दानों को नन्हे दांतों से तोड़ती
छोटे-छोटे बालसुलभ चेष्टाओं की अनोखी कड़ी

सर्दियों की धूप में चिड़ियों को दाने चुगाना
सुमधुर कंठ से कोई गीत गाना गुनगुनाना
पेन्सिल से कॉपी पर घर-नदी-पहाड़ बनाना
रंगों को भर घूम-घूम चित्र सबको दिखाना

अपनी फोटो खिचाने को दौड़ कर आ जाना
अंकिता, गोलू, छोटी, छोटे के संग मुस्कराना
अलबम में खुद को ढूंढ कर खुश हो जाना
गुदगुदा रहा तुम्हारे बचपन का याद आना |

© हेमंत कुमार दूबे

रविवार, 18 नवंबर 2012

युग पुरुषों को भी जाना पड़ता





गाँधी गए, सुभाष गए, बाल ठाकरे जी का भी हुआ प्रयाण |
अंत समय में सब धोखा देते हैं, तन, मन, बुद्धि और प्राण ||

युग पुरुषों को भी जाना पड़ता है, समझ ले रे नादान मन |
काम न आते निज तन के जन्मे, प्रिय प्राणेश्वरी व स्वजन||

संतावना देता कोई खड़ा, कंधे पर ले जाता कोई श्मसान |
महल-अटारी कुछ काम न आते, छूट जाता है सारा धन ||

राम नाम जो जीभ रखा, जिसने किया भजन-सुमिरन |
ऐसे मानुस ही तरते है, बाकि भटकते लख-चौरासी वन ||

(c) हेमंत कुमार दूबे

=> भारत की राजनीति का एक स्तंभ, बाल ठाकरे जी,  आज पञ्च तत्व में विलीन हो गए | कभी मिला नहीं पर जानता हूँ बाल ठाकरे जी एक धार्मिक, कर्तव्य परायण व कर्मठ  व्यक्ति थे | काव्य के द्वारा यह श्रद्धा-सुमन उन्हें सादर समर्पित है| ऊँ शांति ... शांति... शांति..

शुक्रवार, 16 नवंबर 2012

माँ के हैं अनगिनत उपकार



दो शब्द है बड़े अनूठे
एक ओम्, एक माँ
एक सृजक इस जग का
एक मेरा, वह मेरी माँ

खुद गीले में सो जाती थी
सूखे में मुझको रख कर
मेरा उदर भरती थी माँ
खुद भूखी रहकर दिनभर

सर्दी न लग जाये मुझको
गरम कपड़े पहना देती थी
अपने लिए नहीं एक पर
मेरे लिए स्वेटर बुनती थी

दीखता नहीं उसे फिर भी
सुई से बटन टांकती थी
अपने लिए पुराने कपड़े
मेरा बदन नए से ढांकती थी

सुन्दर मुझको बनाकर वो
काला टीका लगा देती थी
रोता था जब बेरोकटोक
नजर मेरी उतारती थी

राजा बेटा कह कर वो
रानी माँ बन जाती थी
जिद करता जब घूमने की
घोड़ा-गाड़ी बन जाती थी

पढ़ना-लिखना आता न था
मुझको पढ़ते देख खुश होती
आता प्रथम अपनी कक्षा में
माँ खुशी से झूम उठती

विवाह का समय जब आ पहुंचा
माँ ने बनवाये ढ़ेरों गहने  
नई नवेली दुल्हन के लिए
उसने सजाये जाने कितने सपने

न्योछावर किया माँ ने सुख
बहू के लिए मन में थी ममता
सुख दुःख को समझकर नश्वर
परिवार को देती रही शीतलता

अरमान रह गए कई अधूरे
माँ ने फिर भी संतोष किया
बेटे के घर जन्मे दो बेटे
समय का पहिया घूम गया

माँ समान नहीं कोई जग में
बात ध्यान से सभी सुनो
माँ के हैं अनगिनत उपकार
थक जाओगे मत गिनो |

(c) हेमंत कुमार दूबे

गुरू बिन ज्ञान नहीं है जग में




बचपन बीता, बीती जवानी
शरीर बुढ़ापा अब है आया
पोथी पढ़ी-पढ़ी जनम गवायाँ
ईश्वर का मर्म नहीं पाया

संगी-साथी काम न आवें
माता-पिता का खोया साया
पत्नी बच्चों में मगन हो रही
माया ने हर पल भरमाया

गुरू बिन ज्ञान नहीं है जग में
पोथी-पोथी लिखा है पाया
कहाँ मिलेंगे भव नाव खिवैया
जहाँ गया वहीं गया ठगाया

काशी, मथुरा, उज्जैन में ढूंढा
कुम्भ मेले में भी हो आया
हार के जब ईश्वर को पुकारा
गुरूदेव से उन्होंने तुरंत मिलाया |

(c) हेमंत कुमार दूबे

बुधवार, 14 नवंबर 2012

मौन




वर्षों बाद मिलन
घड़ी भर का साथ
मन में शब्दों की चहलकदमी
बाहर भागती जिंदगी का शोर

निगाहें टिकी हुई
निहारती प्रीतम को
होंठ बंद
सांसों को पकड़ते
धडकनों को सुनते कर्ण
जड़वत तन

गहरा मौन
जिसमें शब्दों की चहलकदमी
द्रुतगति से सम्प्रेषण
जैसे बतियाती हुई चंद्र रश्मियाँ
दो पहाड़ियों के मध्य


मौन ने वह कह दिया
जो वर्षों से कहा न था
जोड़ दिए
दिल के तार
मिलन सम्पूर्ण हुआ
प्रेम से परिपूर्ण हुआ |

(c) हेमंत कुमार दूबे

मंगलवार, 13 नवंबर 2012

सच्ची दिवाली



ज्ञान हो जाये आत्मा-ज्योति का
परम-ज्योति में हो स्थिति
चाह घटे नश्वर संसार की
शाश्वत में हो जाये प्रीति

आतिशबाजी बहुत हो गयी
बँट गईं मेवे-मिठाईयां भी
जलाएँ दीपमाला भीतर की
होगी सच्ची दिवाली तभी  |

(c) हेमंत कुमार दूबे

=> दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ !!

शनिवार, 10 नवंबर 2012

गुड़िया मेरी



चांदनी-रथ पर हो सवार, आई है परी-सी गुड़िया मेरी |
छोटे हाथों, छोटे पावों को चलाती आई, ये गुड़िया मेरी ||
थोड़ी चंचल, थोड़ी नटखट, भोली-भाली है गुड़िया मेरी |
ईश्वर का उपहार, लाई जीवन में बहार, ये गुड़िया मेरी ||

जब हँसती, खिलते फूल, महक जाती है बगिया मेरी |
माँ की लाड़ली, दुलारी, बड़ी प्यारी है, ये गुड़िया मेरी ||
गोद में आते ही किलकारती-पुकारती है गुड़िया मेरी |
वैष्णवी नाम से पावन करती रहती है, ये गुड़िया मेरी ||

(c) हेमंत कुमार दूबे

=> वैष्णवी श्रीमति व श्री उमेश दूबे की कन्या हैं और मैं उसका फूफा हूँ | आज वह मेरे घर आई थी तो यह काव्य-गीत बना |