> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : सितंबर 2012

बुधवार, 26 सितंबर 2012

मैं वही हूँ




मैं हिंदू नहीं
मुसलमान नहीं
सिख या ईसाई नहीं
बौद्ध या जैन नहीं
सिर्फ एक बन्दा हूँ
अपने आप में परिपूर्ण

देह वालों की नजरों में
धर्म वाला हूँ
जाति वाला हूँ
जीव हूँ
पर
मेरा सच
अटल सत्य है
जिसे लोग कहते हैं
ईश्वर या अल्लाह
उसका ही अश्क हूँ
स्वयं वही हूँ

कवि हूँ
कविता भी हूँ
शब्द हूँ
रचयिता भी हूँ
सृजन में आनंदित
आनंद का मूल हूँ

जिसे कहते हैं
सर्वशक्तिमान
हाजरा-हुजूर
उनसे परे नहीं मैं
वही हूँ

सृजक हूँ
अनेक रूपों में भासता हूँ
कण-कण में व्यापता हूँ
लड़ता हूँ लड़ाता हूँ
प्रेम से रहता हूँ
प्रेम करना सिखाता हूँ
बंदगी करता हूँ
बन्दा हूँ
बन्दे का मालिक भी
मैं ही मैं हूँ
कृष्ण हूँ
अर्जुन भी मैं ही हूँ

मेरे नाम अनेक
रूप अनेक
पर मैं
सबमें एक का एक
मेरे सिवा दूजा नहीं

स्वयं मैं ही
अंतरिक्ष रूपी मैदान बन
पृथ्वी, सूरज, चाँद, तारे बन
ग्रह और नक्षत्र उजियारे बन
जड़ और चेतन बन
खेलता हूँ अपने रंगमंच पर
खेल सृजन और संहार का

अपनी माया से
अक्सर मोहित हो जाता हूँ
अनेक रूपों में एक होते हुए
कवि, कविता और श्रोता
सृजक, सृष्टि और दृष्टा
पृथक-पृथक नजर आता हूँ
मैं अलबेला हूँ
बुलाओ चाहे जिस नाम से
मैं तो एक ही हूँ |

(c) हेमंत कुमार दूबे 

मंगलवार, 25 सितंबर 2012

यह कैसा सरदार देश में?




गुरु गोविन्द थे बड़े महान
बनाई एक फ़ौज शक्तिशाली
अपनी धरती माँ कि खातिर
सरदारों की कौम बनाई
एक-एक सरदार लड़ा देश की खातिर
बलिदान आज सब करते याद
मिली आज़ादी भारत को
बहाया खून सरदारों ने जब
भाग गए अंग्रेज लुटेरे
भारत का झंडा फहराया
एक भगत सिंह जिसने झेली फांसी
दिया अपना सर्वोच्च बलिदान
अब यह कैसा सरदार देश में
जिसके शासन में जनता लाचार
मंहगाई के कोडे खाती
जिसने दे दी जन को फांसी
लटक रहा जनता का पुतला
हर घर की खूंटी से

गोरी मेम की करता जी हजूरी
उसकी इच्छा करता पूरी
देश का पैसा बाहर जाये
चाहे कोई लूट ले जाये
छूट देता आया गैरों को
अपनों को तो सिर्फ बरगलाया

२जी, कामनवेल्थ गेम में
कोलगेट के काले खेल में
देश का धन खूब लुटाया
मंहगाई बढ़ा-बढ़ा कर
जन की कमर तोड़ दी इसने
कहता है मैं ईमानदार हूँ
पर क्या बेईमानों का सरदार नहीं है?

बेईमानी पनपी और फूली
भ्रष्टों की भर गई झोली
धूल डाल जन की आँखों में
देश बेचने की कोशिश हो ली

सरदारों से बचा था देश
विदेशों में नाम कमाया
डालर देश में उनसे आया 
जग में भारत का झंडा लहराया
पर यह कैसा सरदार देश में?
यह कैसा सरदार देश में ?

(c) हेमंत कुमार दूबे

सोमवार, 24 सितंबर 2012

गणेश वंदना




हाथ जोड़ वंदन करूँ सुनिए गणराय,

मूसक की सवारी पर शीघ्र आ जाएँ |

शशि को बिठा भाल तिलक लें लगा,

हाथ में परसु और फांस लेकर आएँ || १ ||

 

सिंदूर बदन में लगा मोदक ले हाथ,

वरद हस्त भारत पर रखिये महाराज |

देश के द्रोहियों को देकर सद्बुद्धि,

भारत-भक्तों के सवारिये सब काज || २ || हाथ जोड़....

 

गजबदन, विनायक, लम्बोदर कहलाते,  

पार्वती नंदन स्कन्द के लघु भ्राता |

शंकर के गणनायक अतुलित बलशाली,

हिमालय के धेवते है आप सुरत्राता || ३ || हाथ जोड़...

 

दुष्ट आतंकियों को मार दीजिए भगा,

आन-बान भारत की आप ही के हाथ |

बिगड़ी संवारिये प्रभु भारत का भाग्य

विनय करता ‘हेमंत’ कीजिये सनाथ || ४ || हाथ जोड़...

 
(c) हेमंत कुमार दूबे

रविवार, 23 सितंबर 2012

अपना घर सम्हालो भाई




टोपी पहने छत पर बंदर 
नाच रहा तेरी रोटी लेकर
उसके संग है एक बंदरिया 
सात समंदर पार कलंदर 

ठुमक ठुमक कर नाच दिखाता
बंदरिया पर प्यार जताता 
एक इशारा जो वह कर दे 
सिर के बल खड़ा हो जाता

अपना घर सम्हालो भाई
बन्दर-बंदरिया है उत्पाती
देख नाच मोहित न होना
ये है बड़े विश्वासघाती 

गाँधीजी का नहीं ये बंदर
नहीं उनकी ये बंदरिया 
करेंगे घर में तोड़ फोड 
ले जायेंगे तेरी चदरिया

बूझ गए तुम तो अच्छा है
नहीं तो दिमाग अभी बच्चा है
शोर मचाओ सबको बुलाओ
नहीं तो नुक्सान अवश्य संभव है |

(C)
हेमंत कुमार दूबे

शनिवार, 22 सितंबर 2012

जन दरबार में माफ़ी नहीं



देश के उन शासकों को कहूँगा
जिनने बेच दी है आत्मा अपनी
अब धृतराष्ट्र बने बैठे हैं
आमादा है देश बेचने को
ओट ले विदेशी निवेश का
और जो कहते हैं जनता से
पैसे पेड़ पर नहीं लगते

दशकों तक किया तुमने शासन
लूट तुम्हारी अब भी बाकी है
सींचा नहीं धरा को तुमने
पौध रोपना भी बाकी है
उम्र बहुत हो चुकी मगर
भूख पैसे की बाकी है
आँखों पर चश्मा चढ़ा
मगर रतौंधी काफी है
दीखता नहीं स्वार्थी तुम्हें
आगे हरियाली काफी है
लगाओ, सींचो पेड़ अगर तुम
फल रूपी पैसे काफी हैं ..
तुममें नहीं मगर हममें
देश-प्रेम अभी काफी है
अब भी सुधर जाओ वर्ना
जन दरबार में नहीं माफ़ी है ..


(c)
हेमंत कुमार दूबे