> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : सितंबर 2011

सोमवार, 26 सितंबर 2011

मेरे प्रभु!


मेरी हर एक साँस तुम्हारी है,
जैसे हैं हवा, पानी और जमीन,
सुबह की धूप, खुशबू तुम्हारी है
तुमसे ही परिपूर्ण है मेरा जीवन |


तुम तो करते कुछ भी नहीं
सब होता स्वत: कर्मों का परिणाम,
फिर भी सह लेते हर आक्षेप
माता-पिता, बंधू-सखा हो तुम |

मेरे प्रभु, तुम-सा कोई नहीं,
पीछे, अभी, आगे भी नहीं ,
जीवन-प्राण आधार मेरे तुम,
तुममे मुझमें कुछ भेद नहीं  !

(c) हेमंत कुमार दुबे

सोमवार, 19 सितंबर 2011

कविता


कविता बनती नहीं है
लबों पर आ जाती है,
कुछ पलों के लिए
मानस पर छा जाती है|

फूल पर मडराते हुए
भ्रमर की नादानी है
कभी खुशी, कभी गम
जिंदगी की कहानी है |

एक करिश्मा सी है,
खुदा की इनायत है,
कुछ तो सुकून मिले
दिल में अगर दर्द है|

हर चोट का मरहम
आंसूओं की कहानी है
कभी आँखों की चमक
कभी बहता पानी है|

इस गंगा में डुबकी
ईश्वर तक  है पहुंचाती,
टूटे स्वप्नों को जोडती
मुस्कान होठों पर लाती|


(c) हेमंत कुमार दुबे

रविवार, 18 सितंबर 2011

स्पर्श










लाग-इन करके फेसबुक पर,
मेरी प्रोफाइल पर जब तुम आती,
सुबह की गुनगुनी धूप में,
वो कमल कली सी खिल जाती,
फिर भंवरें गूंजते कवि-मन के,
सुरमयी-मधुमय होता समां|


पसंद 'गर तुम्हे आये कुछ
बस 'लाइक' कर देना
एक स्पर्श ही काफी है तुम्हारा
मेरा दिन बनाने को|

(c) हेमंत कुमार दुबे


गुरुवार, 15 सितंबर 2011

तुम्हारे खत


जला आया हूँ,
तुम्हारे लिखे खतों को,
जो मेरे पास थे
रखे हुए सहेज कर,
अब फैल गये है
हवा के संग,
धुआं बन कर|

पर बाकि है एक उम्मीद -
उस हवा का कोई झोंका
तुम तक पहुँचे
और याद दिलाये,
तुमने जो लिखा था,
जिससे मेरा दिल
वर्षों तक दु:खा था |

आज सुकून है,
पर भूला नहीं तुम्हे,
आगे भी नहीं मुमकिन,
क्योंकि  -
धुएं का एक कतरा
मेरी सांसों के साथ
फेफड़े में बस गया है,
मरते दम तक
तुम्हारी याद दिलाने को |


(c) हेमंत कुमार दुबे

My grandma

My grandma is a nice old lady,
She keeps herself vey bussy,
She wears colourful saries
And a spectacle on her nose,
Every evening she walks in the park,
But come home when it is dark
She helps in my studies,
At bed time tell good stories,
Grandma teaches things that are right,
I love, respect and bow to her feet.

(c) Hemant Kumar Dubey

बुधवार, 14 सितंबर 2011

यमुना









जो हवा आती थी
तुम्हें छूकर
उसकी खुशबू लुप्त हो गयी
शहर के कंकरिती जंगलों में
नालों के किनारे लोटते
शूकरों के साथ रहते
आशियाना बनाने की चाहत में
मानुषों की गन्दगी का शिकार
तुम आज की यमुना हो
जिसमे शहर का
कचरा बहता है |

सोमवार, 5 सितंबर 2011

निवेदन



 
तुम्हारी अलकों से मोती गिरे
मेरी पलकों में बस गए,
याद तुम्हारी आई तो
हिमालय की अलकनंदा बन गए |
गोते खाते जिंदगी बही जा रही,
अब तो आ जाओ प्रीतम,
कहीं यह किस्ती डूब न जाये
तुम्हारा इंतज़ार करते करते |


(c) हेमंत कुमार दुबे